भारत-चीन सीमा पर तैनात की गई बिहार रेजीमेंट की अपनी अलग ही खासियत है। सर्जिकल स्ट्राइक में हिस्सा लेना हो या कारगिर युद्ध में विजय की कहानी लिखनी हो, बिहार रेजीमेंट की ऐसी सभी लड़ाइयों में खासी भागीदारी रही है।
ऐसा नहीं है कि बिहार नाम होने से इसमें सिर्फ बिहार के लोग ही चुने जाते हैं, इस रेजीमेंट का सिर्फ नाम ही बिहार रेजीमेंट हैं। इस रेजीमेंट ने इतिहास में दर्ज किए जाने वाले काम किए हैं, इसी वजह से बिहार रेजीमेंट को भारतीय सेना का एक मजबूत अंग माना जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि बिहार रेजीमेंट के जवान बहादुर होते हैं और वो किसी भी स्थिति में रह पाने के लायक होते हैं इस वजह से दुर्गम और जटिल परिस्थितियों में इनको तैनात किया जाता है। गलवन और इस तरह की कुछ अन्य दुर्गम घाटी वाले इलाके में इस रेजीमेंट के जवान तैनात हैं।
रेजिमेंट को अपने गठन से लेकर अब तक के इतिहास में तीन 'अशोक चक्र' और एक 'महावीर चक्र' प्राप्त करने का गौरव हासिल है। यदि हाल के दिनों की बात करें तो इस रेजीमेंट ने सन् 1999 के कारगिल युद्ध तथा 2016 में पाकिस्तानी आतंकियों से जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में आतंकियों के खिलाफ मोर्चा लिया था।
प्राणों की आहूति देकर करते हैं मातृभूमि की रक्षा
'जय बजरंगबली' और 'बिरसा मुंडा की जय' की हुंकार इस रेजीमेंट का वाक्य है। इस वाक्य को कहते हुए इस रेजीमेंट के जवान अपने में जोश भरते हैं और दुश्मन के दांत खट्टे कर देते हैं। अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि की रक्षा करने का बिहार रेजीमेंट सेंटर का इतिहास रहा है। इस रेजीमेंट ने दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया था।
देश का दूसरा सबसे बड़ा कैंटोनमेंट
सन् 1941 में अपने गठन के बाद से देश को जब-जब जरूरत पड़ी, बिहार रेजीमेंट के जांबाज जवान वहां खड़े दिखे। रेजीमेंट का मुख्यालय बिहार की राजधानी पटना के पास दानापुर (दानापुर आर्मी कैंटोनमेंट) में है। यह देश का दूसरा सबसे बड़ा कैंटोनमेंट है।
इतिहास में दर्ज बहादुरी की मिसालें
'कर्म ही धर्म है' के स्लोगन के साथ सीमा की पहरेदारी करने वाले बिहार रेजीमेंट के गठन का श्रेय भले ही अंग्रेजी हुकूमत को जाता है, लेकिन इसने अपने स्थापना काल से बहादुरी और देशभक्ति के जो उदाहरण पेश किए हैं, वे इतिहास में दर्ज हैं।
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