अमेरिका की कोशिश, राइट बन्धु

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जैसा कि कहा जाता है कि अमेरिकन राइट बंधुओं ने ( Wright brothers) आधुनिक विमान यान की रचना की थी । इनमें बडा भाई ऑरविल (Orville, १९ अगस्त, १८७१ – ३० जनवरी १९४८) था और दूसरा विलबर ( Wilbur, १६ अप्रैल, १८६७ – ३० मई, १९१२) था । इऩ्हें आधुनिक हवाई जहाज का आविष्कारक माना जाता है। इन्होंने १७ दिसंबर १९०३ को आधुनिक संसार की सबसे पहली सफल मानवीय हवाई उड़ान भरी, जिसमें हवा से भारी विमान को नियंत्रित रूप से निर्धारित समय तक संचालित किया गया। इसके बाद के दो वर्षों में अनेक प्रयोगों के बाद इन्होंने विश्व का प्रथम उपयोगी दृढ़-पक्षी विमान तैयार किया। ये प्रायोगिक विमान बनाने और उड़ाने वाले पहले आविष्कारक तो नहीं थे, लेकिन इन्होंने हवाई जहाज को नियंत्रित करने की जो विधियाँ खोजीं, उनके बिना आज का वायुयान संभव नहीं था।

भारत के द्वितीय आविष्कर्त्ता
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भारत में अंग्रेजों का राज था, उस समय के प्राप्त इतिहास के अनुसार 1903 से कई साल पहले सन 1895 में हमारे देश के एक बहुत बड़े विमान वैज्ञानिक ने हवाई जाहाज बनाया और मुंबई के चौपाटी के समुद्रतट पर उड़ाया और वो 1500 फिट ऊपर उड़ा और उसके बाद नीचे आया !

जिस भारतीय वैज्ञानिक ने यह करामात की उनका नाम था “शिवकर बापूजी तलपडे” वे मराठी व्यक्ति थे| मुंबई मे एक छोटा सा इलाका है जिसको चिर बाज़ार कहते है, वहाँ उनका जन्म हुआ और वहीं उन्होंने पढ़ाई लिखाई की ! अपने गुरु के सान्निध्य में रहकर संस्कृत साहित्य का अध्ययन किया । अध्ययन करते समय उनकी विमान शास्त्र में रूचि पैदा हो गयी । आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में तो विमान बनाने पर पूरा एक शस्त्र लिखा गया है ,उसका नाम हैः--- विमानशास्त्र ! शिवकर बापूजी तलपडे जी के हाथ में महर्षि भरद्वाज के विमान शास्त्र की पुस्तक लग गयी और इस पुस्तक को आद्योपांत उन्होंने पढा । इस पुस्तक से उनको बहुत लाभ मिला ।

ऋषि भरद्वाज प्रथम आविष्कर्त्ता
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इनसे भी हजारों वर्ष पूर्व ऋषि भरद्वाज हुए । इन्होंने संसार में सर्वप्रथम विमानशास्त्र की रचना की और विमान यान का आविष्कार किया । इनकी पुस्तक के आधार पर सैकड़ों पुस्तकें लिखी गईं । भारत में जो पुस्तक उपलब्ध है उनमें सबसे पुरानी पुस्तक 1500 साल पुरानी है और महर्षि भरद्वाज तो उससे भी बहुत पहले हुए ।

इस पुस्तक की विशेषताएँ---
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(1.) इस पुस्तक में कुल आठ अध्याय विद्यमान है । इनमें विमान बनाने की तकनीकी का ही वर्णन है ।

(2.) इन आठ अध्याय में 100 खंड है , जिनमें विमान बनाने की टेक्नोलॉजी का वर्णन है ।

(3.) महर्षि भरद्वाज ने अपनी पूरी पुस्तक में विमान बनाने के 500 सिद्धांत लिखे है ।

एक सिद्धांत (Principle) होता है जिसमें एक इंजन बन जाता है और पूरा विमान बन जाता है, ऐसे 500 सिद्धांत लिखे है महर्षि भरद्वाज ने अर्थात् इनसे 500 तरह के विमान बनाये जा सकते है ।

विमानों के प्रकार:---
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(1.) शकत्युदगमविमान अर्थात विद्युत से चलने वाला विमान,

(2.) धूम्रयान(धुँआ,वाष्प आदि से चलने वाला),

(3.) अशुवाहविमान(सूर्य किरणों से चलने वाला),

(4.) शिखोदभगविमान(पारे से चलने वाला),

(5.) तारामुखविमान(चुम्बक शक्ति से चलने वाला),

(6.) मरूत्सखविमान(गैस इत्यादि से चलने वाला),

(7.) भूतवाहविमान(जल,अग्नि तथा वायु से चलने वाला)।

(8.) आश्चर्य जनक विमान,जो मानव निर्मित नहीं थे, किन्तु उन का आकार प्रकार आधुनिक ‘उडन तशतरियों’ के अनुरूप है।

विमान विकास के प्राचीन ग्रन्थ
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भारतीय विमान की उपलब्धि प्राचीन संस्कृत भाषा में सैंकडों की संख्या प्राप्त है,
किन्तु खेद का विषय है कि उन्हें अभी तक किसी आधुनिक भाषा में अनुवादित ही नहीं किया गया। यद्यपि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में ऋषि भरद्वाज रचित विमानशास्त्र का उल्लेख किया है, जिसका संस्कृत में अनुवाद किया है । हिन्दी में सामान्य रूप से लिखा है ।

प्राचीन भारतीयों ने जिन विमानों का अविष्कार किया था, उन्होंने विमानों की संचलन प्रणाली तथा उन की देख भाल सम्बन्धी निर्देश भी संकलित किये थे,
जो आज भी उपलब्ध हैं और उन में से कुछ का अंग्रेजी में अनुवाद भी किया जा चुका है।
विमान विज्ञान विषय पर कुछ प्राचीन ग्रन्थः---
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1. ऋगवेद :---
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इस आदि ग्रन्थ में कम से कम 200 बार विमानों के बारे में उल्लेख है।
उन में तिमंजिला, , त्रिभुज आकार के तथा तिपहिये विमानों का उल्लेख है, जिन्हें अश्विनी कुमारों (वैज्ञिानिकों) ने बनाया था। उनमें साधारणतया तीन यात्री जा सकते थे। इनविमानों के निर्माण के लिये स्वर्ण, )सोना) रजत )चाँदी) तथा लौह (लोहे) धातु का प्रयोग किया गया था तथा उनके दोनों ओर पंख लगे होते थे।

वेदों में विमानों के कई आकार-प्रकार उल्लेख किये गये हैं।
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(1.) अहनिहोत्र विमानः-- इनके दो ईंजन तथा हस्तः विमान (हाथी की शक्ल का विमान) में दो से अधिक ईंजन होते थे।

(2.) एक अन्य विमान का रुप किंग-फिशर पक्षी के अनुरूप था।

इसी प्रकार कई अन्य जीवों के रूप वाले विमान थे।

इसमें कोई सन्देह नहीं कि बीसवीं सदी की तरह पहले भी मानवों ने उड़ने की प्रेरणा पक्षियों से ही ली होगी।

ऋग्वेद में विभिन्न विमानों का उल्लेख हैः---
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(1.) जल-यान – यह वायु तथा जल दोनों तलों में चल सकता है।
यास्ते पृषन्नावो अन्तः समुद्रे हिरण्ययीरन्तरिक्षे चरन्ति । (ऋग्वेद 6.58.3)

(2.) कारा – यह भी वायु तथा जल दोनों तलों में चल सकता है।
परि प्रासिष्यदत् कविः सिन्धोरूर्मावधिं श्रितः । कारं बिभ्रत पुरुसपृहम् ।। (ऋग्वेद 9.14.1)

(3.) त्रिताला – इस विमान का आकार तिमंजिला है। (ऋग्वेद 3.14.1)

(4.) त्रिचक्र रथ – यह तिपहिया विमान आकाश में उड सकता है।
अनश्वो जातो अनभीशुरुक्थ्योः रथस्त्रिचक्रः परि वर्तते रजः ।। (ऋग्वेद 4.36.1)

(5.) वायु रथ – रथ की शक्ल का यह विमान गैस अथवा वायु की शक्ति से चलता है।
प्र वो वायुं रथयुजं कृणुध्वं प्र देवं विप्रं पनितारमर्कैः ।। (ऋग्वेद 5.41.6)

(6.) विद्युत रथ – इस प्रकार का रथ विमान विद्युत की शक्ति से चलता है।
विद्युद्रथः सहसस्पुत्रो अग्निः शोचिष्केशः पृथिव्यां पाजो अश्रेत् ।। (ऋग्वेद 3.14.1).

(2. ) यजुर्वेद में भी एक अन्य विमान का तथा उन की संचलन प्रणाली का उल्लेख है, जिसका निर्माण महान् वैज्ञानिक अश्विनी कुमारों ने किया था ।

(3.) विमानिका शास्त्र –1875 ईसवीं में भारत के एक मन्दिर में विमानिका शास्त्र ग्रंथ की एक प्रति मिली थी।

इस ग्रन्थ को ईसा से 400 वर्ष पूर्व का बताया जाता है तथा ऋषि भरदूाज रचित माना जाता है।

इस का अनुवाद अंग्रेज़ी भाषा में हो चुका है।

इसी ग्रंथ में पूर्व के 97 अन्य विमानाचार्यों का वर्णन है तथा 20 ऐसी कृतियों का वर्णन है जो विमानों के आकार प्रकार के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं।
खेद का विषय है कि इन में से कई अमूल्य कृतियाँ अब लुप्त हो चुकी हैं।

इन ग्रन्थों के विषय इस प्रकार थेः-

विमान के संचलन के बारे में जानकारी,

उडान के समय सुरक्षा सम्बन्धी जानकारी,

तुफान तथा बिजली के आघात से विमान की सुरक्षा के उपाय,
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आवश्यक्ता पडने पर साधारण ईंधन के बदले सौर ऊर्जा पर विमान को चलाना आदि।

इस से यह तथ्य भी स्पष्ट होता है कि इस विमान में ‘एन्टी ग्रेविटी’ क्षेत्र की यात्रा की क्षमता भी थी।

विमानिका शास्त्र में सौर ऊर्जा के माध्यम से विमान को उडाने के अतिरिक्त ऊर्जा को संचित रखने का विधान भी बताया गया है।

एक विशेष प्रकार के शीशे की आठ नलियों में सौर ऊर्जा को एकत्रित किया जाता था , जिसके विधान की पूरी जानकारी लिखित है, किन्तु इनमें से कई भाग अभी ठीक तरह से समझे नहीं गये हैं।

इस ग्रन्थ के आठ भाग हैं जिनमें विस्तृत मानचित्रों से विमानों की बनावट के अतिरिक्त विमानों को अग्नि तथा टूटने से बचाव के तरीके भी लिखित हैं।

ग्रन्थ में 31 उपकरणों का वृतान्त है तथा 16 धातुओं का उल्लेख है जो विमान निर्माण में प्रयोग की जाती हैं . जो विमानों के निर्माण के लिये उपयुक्त मानी गयीं हैं क्यों कि वह सभी धातुयें गर्मी सहन करने की क्षमता रखती हैं और भार में हल्की हैं।

(4.) यन्त्र सर्वस्व :---
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यह ग्रन्थ भी ऋषि भारद्वाज जी द्वारा रचित है। इसके 40 भाग हैं जिन में से एक भाग ‘विमानिका प्रकरण’के आठ अध्याय,लगभग 100 विषय और 500 सूत्र हैं जिन में विमान विज्ञान का उल्लेख है।

इस ग्रन्थ में ऋषि भारद्वाज ने विमानों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया हैः-
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(1.) अन्तर्देशीय – जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हैं।

(2.) अन्ताराष्ट्रिय – जो एक देश से दूसरे देश को जाते है ।
(3.) अन्तर्नक्षत्रीय – जो एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक जाते है ।

इन में से अति-उल्लेखनीय सैनिक विमान थे, जिनकी विशेषतायें विस्तार पूर्वक लिखी गयी हैं और वह अति-आधुनिक साईंस फिक्शन लेखक को भी आश्चर्य
चकित कर सकती हैं।
उदाहरणार्थ सैनिक विमानों की विशेषतायें इस प्रकार की थीं-

पूर्णतया अटूट,अग्नि से पूर्णतया सुरक्षित,तथा आवश्यक्ता पडने पर पलक झपकने के साथ (अन्दर) ही एकदम से स्थिर हो जाने में सक्षम।

शत्रु से अदृष्य हो जाने की क्षमता।
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शत्रुओं के विमानों में होने वाले वार्तालाप तथा अन्य ध्वनियों को सुनने में सक्षम।

शत्रु के विमान के भीतर से आने वाली आवाजों को तथा वहाँ के दृष्यों को रिकार्ड कर लेने की क्षमता।

शत्रु के विमान की दिशा तथा दशा का अनुमान लगाना और उस पर निगरानी रखना।

शत्रु के विमान के चालकों तथा यात्रियों को दीर्घ काल के लिये स्तब्ध कर देने की क्षमता।

निजी रुकावटों तथा स्तब्धता की दशा से उबरने की क्षमता।

आवश्यकता पडने पर स्वयं को नष्ट कर सकने की क्षमता।
यदि आप ही अपने गौरवशाली सत्य इतिहास को जानना चाहते हो तो मित्रो आर्यावर्त्त 🌞🇮🇳 (जिसे आज भारत, हिन्दुस्तान, इण्डिया के नाम से जाना जाता है) ने दुनिया को और क्या क्या दिया है ? हमने पूरी दुनियाभर के लोगो को ज्ञान हमने दिया है हमारे हर कार्य पर्व पद्धति पूरी तरह से  विज्ञान पर आधारित  है ।

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