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शासन का क्या प्रभाव होताहै ,इसे सब से ज्यादा अनुभव हिन्दुओं को करना चाहिए पर शिक्षित हिन्दू यह भूल चुके हैं . वे भूल गए कि मुस्लिम शासंन जहाँ था वहां कैसे आनन् फानन में मंदिर तोड़ डाले जाते हैं ,अंग्रेज जहाँ थे वहाँ कैसे भारतीय शिक्षा जड़ मूल से नष्ट कर दी गयी और नेहरु शासन जैसे ही आया ,हिन्दू धर्म पर कैसे सुनियोजित चोट पर चोट पड़ने लगी , सब भूल गए ,स्वयं भाजपा भूल गयी , ब्राह्मण भूल गए .सब भूल गए
तो एक और खुद अंग्रेज अफसर रिपोर्ट छापते हैं कि१८ वीं शताब्दी तक भारत में हर जाति के शिक्षक और हर जाति के विद्यार्थी विशाल संख्या में पढ़ते थे . यह काम किया अफसरों के एक वर्ग ने . उधर जिन्हें शासन के लिए शासित समूह में हीनता का प्रचार आवश्यक लगा , उन्होंने शुरू किया शताब्दियों से घोर अन्याय का प्रचार . दोनों साथ साथ .
पहली जनगणना में अछूत नमक एक वर्ग रखकर अलग गणना हुयी तो निकला कि भारत में कुल अढाई प्रतिशत अछूत हैं . यह संख्या प्रचार के लिए बहुत कम लगी तो एक लिस्ट बनायीं कि हाशिए पर और कौन जातियां शामिल की जा सकती हैं , इसे नाम दिया अनुसूचित जातियां .. बड़े जोड़ तोड़ से ये हुए १४ प्रतिशत , आ ज राजनैतिक गणित वाले इस १४ प्रतिशत को बहुजन कहते हैं . हो तेरा क्या कहना !
फिर अंग्रेजों में जो कमीने थे , उन्हें लगा कि और झ्हूठ रचो फैलाओं तो उन्होंने किस फैलाया कि यहाँ के मूल निवासी तो गोंड, संथाल मिज़ो ,मैती, खैरवार आदि२ हैं . इस प्रचार से घबराकर कांग्रेस ने १९३७ में एक और सूची बनवाई अनुसूचित जन जाति की .उनका कुल प्रति त था साढ़े सात प्रतिशत ..
इसके आगे की प्रक्रिया का सार तो सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया के क्रम ११ से १४ में पढियेगा . यहाँ सीधे वर्तमान स्थिति पर आते हैं .:
१. राजनैतिक रूप से तथाकथि उच्च जातियों वाले लोग ( बुरा मत मानियेगा) आश्चर्यजनक मूरख सिद्ध हुए हैं क्योंकि उन्होंने अपनी ही जातियों में जन्मे पर यूरंड पंथी बन चुके बड़े पद वालों पर गजब का प्रेम रखा जो भाव स्तर पर सुन्दर है पर बुद्धि की दृष्टि से महा मोह तंम पुंज है .
२ राजनैतिक दृष्टि से जो सूचियाँ युरंदों ने बनायीं थी , उसके सच्चे हितैषी और संरक्षक बने उच्च जाती के यूरंड नेता और इनको निरंतर उकसाकर हिन्दू समाज और उच्च ( ?) जातियों के विरुद्ध उभडा ताकि वे दबते जाएँ क्योंकिउन्हे प्रतिस्पर्धा उनसे ही दिखती थी ,तथाकथित निम्न जाती को अपने कब्जे में मानते थे .
३ इसमें भारत विरोधी ३ शक्तियों की निर्णायक भूमिका थी : १. उग्र इस्लामवाद , २. ख्रिस्त विस्तारवाद और ३ अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिज्म .
इनमे से तीसरा निष्प्राण है ,उसे भारत में कांग्रेस और प्रथम दोनों शक्तिया अपनी सेवा में लिए हैं अतः उनकी उपेक्षा आवश्यक है . वे निरीह हैं ,दयनीय हैं ,निराश्रित है ,उनका पोषण भाजपा के कुछ लोग और कांग्रेसी भी कर रहे हैं तथा कुछ लोग जो ७० वर्ष उनके आतंक में जिए ,वे उन पर ध्यान दे दे कर उनका महत्त्व बढ़ाये हैं अनजाने ही , उन्हें उपेक्षित छोड़ दिया जाये तो मर जायेंगे . उन पर इतनी गालियों की जरूरत नहीं . आप उनसे सम्वाद एकदम बंद कर दीजिये ,उन्हें पागल कुत्ते की तरह मानकर उनसे दूरी बनाइये , ,देखिये वे किस दशा में पहुँचते हैं पर उन्हें महत्त्व इस समय भाजपा के लोग ही दे रहे हैं शायद अपना महत्व बढ़ाने के लिए .दिनेश शर्मा जैसे उप मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश में और कई मुख्य मंत्री अन्य प्रदेशों में अपने प्रिय अफसरों को इशारा कर communists को पोस रहे हैं . आज भी ..(क्रमशः ३ पर )
जाति ,जातिवाद -------------------३
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४. इस प्रक्रिया में वस्तुतः तथाकथित उच्च जाति वालों के वे मुख्य लोग जो दलाल नहीं है ,भले हैं.सब प्रकार से सम्मान योग्य हैं , वे राज नीति की दृष्टि से विचित्र भोंदू दिख रहे हैं , उन्होंने अंग्रेजो और कुटिल कमीनो के प्रचार को सत्य मान लिया है ,न देश का इतिहास पता ,न विश्व का और जबरन टाग अडा रहे हैं राजनैतिक प्रक्रिया में .वे आडवाणी जी जैसे हैं , पुरानी बासी मानसिक दुनिया में जी रहे हैं . उन्हें संन्यास ले लेना चाहिए ,अध्ययन और आत्मज्ञान की साधना करनी चाहिए , वे राष्ट्र का अहित कर रहे हैं
वे पता नहीं किस हिन्दू समाज को एक बनाये रखने की पागल धुन में हैं और वास्तविक हिन्दू समाज को देखते ही नहीं .
अरे भाई ,हिन्दू समाज आज भी विश्व का सबसे संगठित और सबसे कम कलह रत समाज है क्योंकि यहा वैसा कोई अन्याय हुआ ही नहीं जो सारी दुनिया में हुआ है .थोडा दुनिया का इतिहास पढ़िए या घर बैठ कर गीता जी पढ़िए .
टांग अडायेंगे राजनीति में जो आज अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान के बिना असंभव है और तोता बनेंगे देश के दुश्मनों के .
गाँधी जी ने जो किया खेल किया ,कांग्रेस ने जो किया खेल किया , भाजपा के भी धूर्त नेता तो खेल ही कर रहे हैं पर संघ भाजपा के भले लोग जो निरर्थक करुणा से लोटपोट हो रहे हैं और शत्रु सर पर चोट पर चोट कर रहा है , वे सबसे बड़ी समस्या हैं ,मेरी हाथ जोड़कर विनती है ऐसे लोगोंसे , रास्ते से हट जाएँ ,घर बैठें .स्वधर्म का पालन करें ,आजकी राजनीति उनका स्वधर्म नहीं है ,विधर्म है ,परधर्म है . हट जाएँ .
५ कोई वाचाल लफंगा खड़ा हो जाये किसी जाति का नेता बनकर और किसी की शह और समर्थन से थोड़ी भीड़ जुटा ले तो आप उसे उस जाति का नेता मान लेते हैं . तब आप भयंकर और महामूरख जातिवादी हैं श्रीमान .
जाति कोई देहिक ईकाई नहीं है .. उसकी एक कुल परंपरा है ,शील प्रवाह है . लफंगे जाति के प्रतिनिधि नहीं होते , सयाने उसके प्रतिनिधि होते हैं
६ पहली बात है जो व्यक्ति हिन्दू समाज का स्वयं को अंग मानता है ,केवल वही किसी जाति का अंग है ,.क्योंकि जाति हिदू समाज में है , बाहर नहीं .अतः जो भी हिन्दू समाज को disown करे उसे आप disown करिए . भीड़ कुछ दिन जुटे उसके साथ ,जुटने दीजिये . आपको मानकर नहीं देना है कि वह अमुक जाति का है , घोषणा कीजिये कि वह किसी जाति का प्रतिनिधि नहीं है क्योंकी वह हिन्दू समाज का प्रतिनिधि नहीं है . भले लोग यह नहीं कर सकते तो हट जाएँ .यह राजनैतिक युद्ध है ,यह समाज की कोई समस्या है ही नहीं ,इसे आप समाज वाली दृष्टि से सुलझा ही नहीं सकते . जो इसे राजनैतिक दृष्टि से देखें और लडे , उन्हें आगे आने दीजिये . आप किसी काल्पनिक दुनिया में जी रहे हैं वहीँ मस्त रहिये .,
(जारी --४ पर).. .
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रामेश्वर मिश्र पंकज
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