कभी ओशो की प्रिय रहीं मां आनंद शीला ने किताब में उन पर लगाए हैं कई गंभीर आरोप



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11 दिसंबर, 1931 को जन्‍मे आचार्य रजनीश 'ओशो' का नाम 20वीं सदी के आध्यात्मिक गुरुओं में प्रमुखता से लिया जाता है। वह, उन लोगों में शामिल थे, जिन्होंने सभी धर्मों का खंडन करते हुए एक अलग ही पंथ चलाया था। एक जमाने में रजनीश ओशो की सबसे करीबी और प्रिय रहीं मां आनंद शीला ने अपनी किताब में उनके बारे में कई बातें लिखी हैं। हालांकि, मां आनंद शीला पर ओशो के आश्रम में घपला करने का आरोप भी लगा था। 55 मिलियन डॉलर का घपला करने के आरोप में उन्हें 39 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था। जेल से रिहा होने के बाद आनंद शीला ने किताब 'डोंट किल हिम! द स्‍टोरी ऑफ माई लाइफ विद भगवान रजनीश' लिखी। 2013 में आई इस किताब में उन्‍होंने कई दावे किए।


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मां आनंद शीला ने अपनी किताब में लिखा कि, मुंबई स्‍थित मेरे चाचा के बंगले के ठीक सामने ही रजनीश का घर था। इसलिए उनसे मुलाकात की मेरी इच्‍छा जल्‍द ही पूरी हो गई। जब मैं रजनीश के घर गई तो वह सफेद कपड़ों में बैठे थे। उनके ठीक पीछे एक छोटी सी टेबल थी जिस पर कई किताबें पड़ी थीं। उनकी कुर्सी के सामने दो पलंग थे। वह जब मुझसे मिले तो कुछ क्षणों तक उन्‍होंने मुझे अपने सीने से लगाए रखा। उस समय मुझे एक अद्भुत व आनंद का अनुभव हुआ। इसके बाद आहिस्‍ता-आहिस्‍ता उन्‍होंने मुझे छोड़ा और फिर मेरा हाथ पकड़ लिया। मेरे सिर को अपनी गोद में रखा। इसके बाद उन्‍होंने मेरे पिता से बातचीत शुरु की।


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किताब 'डोंट किल हिम! द स्‍टोरी ऑफ माई लाइफ विद भगवान रजनीश' में लिखा है कि ओशो के आश्रम में अध्यात्म के नाम पर खुले आम सेक्स की बातें होती थीं और शारीरिक रिश्‍ते बनाने पर पाबंदी नहीं थी। शिविरों में सबसे ज्यादा सेक्स पर ही चर्चा होती थी। आश्रम का हर संन्यासी एक महीने में करीब 90 लोगों के साथ सेक्स करता था। ओशो अपने भक्तों को बताते थे कि सेक्स की इच्छा को दबाना कई कष्टों का कारण हो सकता है, इसलिए खुलकर सेक्स करना चाहिए।


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शीला ने अपनी किताब में लिखा है कि ओशो अद्भुत बिजनेसमैन थे। उन्‍हें अपने प्रोड्क्‍ट, उसकी कीमत और मार्केट की अच्‍छी जानकारी थी। वे आश्रम को इस तरह चलाना चाहते थे जिससे तमाम खर्च रिकवर हो जाएं। इसी के चलते आश्रम में प्रवेश के लिए फीस भी वसूली जाती थी। उनके थेरेपिस्‍ट ग्रुप भी आश्रम में थेरेपी के लिए पैसे लिया करते थे। आश्रम में आने वाले लोगों को उनका मनपसंद भोजन मुहैया करवाया जाता था। इसके लिए भरपूर पैसा वसूला जाता था।


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'संभोग से समाधि की ओर' जैसी पुस्तकें लिखने वाले ओशो कई बार इसे लेकर भी विवादों में आए। मां शीला की किताब में लिखा गया है कि आश्रम में रह रहे सभी संन्‍यासियों का शोषण होता था। ओशो अपने बेबाक और स्पष्ट विचारों से विवादों में भी रहे। उनका कहना था कि वे जो बात करते हैं, उसे अमीर और बुद्धिमान व्यक्ति ही समझ सकता है। आनंद शीला के मुताबिक ओशो ड्रग्स की लत का शिकार हुए थे। उनकी मौत 1990 में हुई थी।


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ओशो के पास 90 लग्जरी रॉल्स रॉयस गाड़‍ियां थीं। लगभग 15 वर्ष तक लगातार सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रहने के बाद आचार्य रजनीश उर्फ ओशो ने वर्ष 1981 में मौन धारण कर लिया था। इसके बाद उनके द्वारा रिकॉर्डेड सत्संग और किताबों से ही उनके प्रवचनों का प्रसार होता था। वर्ष 1984 में उन्होंने सीमित रहकर फिर से सार्वजनिक सभाएं करना शुरू किया। जून, 1981 में आचार्य रजनीश अपने इलाज के लिए अमरीका गए, जहां ओरेगन सिटी में उन्होंने ‘रजनीशपुरम’ की स्थापना की।


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