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"....किसी सामान्य व्यक्ति की ट्रेनिंग में सेना को 6 या 7 माह लगता है लेकिन संघ के अनुशासित स्वयंसेवक ,सेना द्वारा 3 दिन में प्रशिक्षित होकर सेना का कार्य कर सकते हैं ।"
श्रधेय मोहन जी भागवत के उक्त आशय के बयान पर राजवंशियों द्वारा आपत्ती व्यक्त की गई हैं।
ये हमारी महान सेना को टीवी डिबेट में "कायर" कहते हैं , सेना शौर्य के अप्रतिम उदाहरण "सर्जिकल स्ट्राइक" का सबूत मांगकर पाकिस्तानी आकाओ के सुर में सुर मिलाते हैं , भारतीय सेना के नायक सेनाध्यक्ष को "गली का गुंडा" कह कर अपमानित करते हैं , सेना पर "पत्थर फेंकने वालो का पक्ष " लेते हैं , जेएनयू में "कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी जारी" ,ओर भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशा हल्ला " कहने वालों के साथ बैठते हैं , "डोकलाम विवाद" के समय सेना का मनोबल तोड़ने के लिए चोरी छिपे चीनी दूतावास में बैठक करते हैं , जिनके पूर्व प्रधानमंत्री पाकिस्तानी राजदूत ओर सेना अफसरों के साथ मणि शंकर जैसे पाकिस्तान परक व्यक्ति के घर बैठक करते हैं , जिनके पूर्वजो ने कश्मीर पर भारतीय सेना के रक्त से लिखी विजय पर समझौतों की काली कालिख पोतकर पकिस्तान के नब्बे हजार सैनिक छोड़ दिये है ,ओर सेना की जीती जमीन दुश्मन को वापिस की हो , बोफोर्स जैसे रक्षा सौदों में जिनके पुरखो का संदिग्ध इतिहास रहा हो , 1984 में जिन लोगो ने सिखों के परिवार जनों को जिंदा जलाया हो ऐसे राजवंशी संघ प्रमुख पर झूठे आरोप लगा कर संघ और सेना का अपमान कर रहे है , .......तो हमे भी सामने आना ही पड़ेगा ।
...वास्तव में अपनी खोई सत्ता फिर से पाने की हवस में इनका सबसे बड़ा रोड़ा "संघ" है ।इसलिए हमेशा से "संघ "इनके निशाने पर रहा हैं ।
वास्तव में देश पर संकट के समय सेना और संघ एक सिक्के के दो पहलू की तरह कार्य करते हैं। ।....इसका उदाहरण है
"....संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी. यह काम न नेहरू-माउंटबेटन सरकार कर रही थी, न हरिसिंह सरकार.
....उसी समय, जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई संघ के स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे.
....1948 में जब कश्मीर के महाराजा हरि सिंह विलय में नेहरू के अड़ंगे से फ़ैसला नहीं कर पा रहे थे और उधर कबाइलियों के भेस में पाकिस्तानी सेना सीमा में घुसती जा रही थी, तब नेहरू सरकार - " हम क्या करें वाली मुद्रा में - मुंह बिचकाए बैठी थी".
सरदार पटेल न तत्कालीन सरसंघचालक श्री गुरु गोलवलकर से मदद मांगी , श्री गुरुजी श्रीनगर पहुंचे, महाराजा से मिले. इसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया.
...सेना के कश्मीर पहुंचने के पहले 13 अक्टूबर 1947 को बलराज मधोक से कश्मीर के पीएम मेहर चन्द ने रात के 12 बजे , 150 स्वयंसेवक सुबह 7 बजे तक मांगे , रेनबाड़ी ,पुराना शहर और अमीराकदल कि शाखा के मुख्य शिक्षकों को सोते से जगाकर काम सौंपा गया ,प्रातः 5 बजे से ही स्वयंसेवक इकट्ठे होना शुरू हो गए और 500 कि संख्या में ट्रकों में सवार होकर निहत्थे ही लाठी लेकर ,खूंखार हथियार बन्द कबाइलियों की सेना से लड़ने बादामी बाग छावनी की ओर रवाना हो गए ।हवाई पट्टियां बनाकर सेना का मार्ग प्रशस्त किया ।
...कोटली में वायुसेना के गोले बारूद को बचाने में चन्द्रप्रकाश ओर वेदप्रकाश शहीद हो गए ।बाकी लोगो ने रसद ओर हथियार सेना तक पहुंचाए ।कोटली में एक ही चिता पर उनका अंतिम संस्कार हुआ ।
...बाद में पलारी में भी 100 स्वयंसेवक शहीद हुए ।
1954 में संघ के नेतृत्व में ही ...दादरा, नगर हवेली और गोवा का भारत में विलय हुआ . ....21 जुलाई 1954 को दादरा को संघ के स्वयंसेवको ने ही पुर्तगालियों से मुक्त कराया ...
....28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई.
....संघ के स्वयंसेवकों ने 2 अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया.
संघ के स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे. गोवा में सशस्त्र हस्तक्षेप करने से नेहरू के इनकार करने पर संघ प्रचारक श्री जगन्नाथ राव जोशी के नेतृत्व में संघ के कार्यकर्ताओं ने गोवा पहुंच कर आंदोलन शुरू किया, जिसका परिणाम जगन्नाथ राव जोशी सहित संघ के कार्यकर्ताओं को दस वर्ष की सजा सुनाए जाने में निकला.
..हालत बिगड़ने पर अंततः भारत को सैनिक हस्तक्षेप करना पड़ा और 1961 में गोवा आज़ाद हुआ.
....जब 1962 में देश पर चीन का आक्रमण हुआ था. तब देश के बाहर पंचशील और लोकतंत्र वग़ैरह आदर्शों के मसीहा जवाहरलाल न ख़ुद को संभाल पा रहे थे, न देश की सीमाओं को.लेकिन संघ अपना काम कर रहा था........1962 के चीन युद्ध में सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा. स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से जवानों की मदद में पूरी ताकत लगा दी – सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद, और यहां तक कि शहीदों के परिवारों की भी चिंता की ।
......जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा.
परेड करने वालों को आज भी महीनों तैयारी करनी होती है, लेकिन मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए।
संघ को 26 जनवरी 1963 की परेड में निमंत्रण दिए जाने की आलोचना होने पर नेहरू ने कहा था कि - “यह दर्शाने के लिए कि केवल लाठी के बल पर भी सफलतापूर्वक बम और चीनी सशस्त्र बलों से लड़ा सकता है, विशेष रूप से 1963 के गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आरएसएस को आकस्मिक आमंत्रित किया गया.”
....1965 के युद्ध में भी संघ ने देश के भीतर क़ानून-व्यवस्था संभाली
1965 के युद्ध में पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया था. शास्त्री जी ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके. घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ के स्वयंसेवक थे.
1971 के युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था.
इसमे कोई दो राय नही कि सेना देश की रक्षा करती है लेकिन संघ भी देश ,समाज और धर्म की रक्षा में अग्रणी भूमिका में है ।
..संघ के अनुशासन और पद्धति की प्रशंसा स्वयम सेना ने भी की है , सेना में आज अनेक सैनिक स्वयंसेवक परिवारों से हैं , सेना पर जब भी देश का एक वंश ओर वाम आतंकवादियों के पक्ष में ओर सेना के विरोध में आवाज उठाता है तो संघ ही सेना की ढाल बनकर सामने आता है ।
आज भी प्राकृतिक आपदा बाढ़ ,भूकम्प ,दुर्घटना ,सुनामी में सेना ओर संघ बढ़चढ़ कर राहत ,पूर्ति ओर बचाव कार्य मिलजुल कर करते हैं ।
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...“राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” जिसने पिछले 92 वर्षों से देश के विभिन्न कोनों में खुद को बाकुशल सक्रिय बनाए रखा है और आज देश में इसकी 40-50,000 शाखाएं, 27,000 एकल विघालय और 50 लाख से ज्यादा लोग इसमें कार्यरत हैं। इस प्रकार यह विश्व का सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन बनकर उभरा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक देशव्यापी, सांस्कृतिक, सामाजिक संगठन है
...सेना और संघ एक दूसरे के पूरक ओर पर्याय है न कि विरोधी , श्रधेय मोहन जी भागवत के वक्तव्य में भी देश की रक्षा में सेना के सहयोग की सात्विक ,सहज,सरल संवेदना थी ...जिसका गलत अर्थ निकाल कर झूठ के तिल से आरोप का ताड़ निरुपित किया जा रहा है ,
चाणक्य ने कहा है कि " करील के वृक्ष में पुष्प नही आते तो बसन्त ऋतु का दोष नही ,स्वाति नक्षत्र की बूंदे चातक के कंठ में नही जाती तो मेघो का दोष नही ..इसी प्रकार यदि सेना और संघ के रिश्ते की समझ इन राज वंशियों को नही है तो इनका दोष नही विदेशी डीएनए का प्रभाव हो सकता है।
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