डार्विन थ्योरी पर मेरे विचार :-
सिद्धान्ति - आरम्भ में क्या था ?
विकासवादी - आरम्भ में केवल परमाणु आदि थे, जो की समुद्र के तल में संयोगवश इक्क्ठे हुए और छोटी कोशिका (अमीबा ) का निर्माण किया, जोकि चेतन (कॉनसियस )थी
सिद्धान्ति - परमाणु जड़ है या चेतन (जिसमे बुद्धि सुख दुःख राग द्वेष व् इच्छा आदि गुण वह चेतन होता है )?
वि - जड़ है |
सि- परमाणु जड़ है तो उसी के संयोग से बनी वस्तु में चेतनता कहाँ से आई ? जैसा गुणधर्म जड़ वस्तु (कारण द्रव्य ) का होता है वैसा ही गुणधर्म अमीबा (कार्य द्रव्य ) में होना चाहिए | जैसे घड़ा मिटटी से बनता है और मिटटी सिलिका के एक एक परमाणु से मिल के बनती है , परमाणु जड़, मिटटी जड़, घड़ा भी जड़ ही है उसी प्रकार तरबूज के छोटे छोटे टुकड़े कर देने पर भी प्रत्येक टुकड़े में वैसे ही गुणधर्म रहेंगे जैसे तरबूज में थे आदि |
प्रश्न पुनः रखता हूँ अमीबा में चेतनता कहाँ से आई ?
वि - पता नहीं | शायद प्राकृतिक परिवेश से |
सि - प्राकृतिक परिवेश, जल, समुद्र की मिटटी , लवण, नमक , जलवायु व् अन्य कारक है ये सभी भी परमाणु से मिल के बने है | परमाणु जड़ है |
प्रश्न पुनः रखता हूँ अमीबा में चेतनता कहाँ से आई ? जीवात्मा व् परमात्मा तो आप मानते नहीं |
वि - पता नहीं |
सि - लीजिये आपकी थ्योरी तो प्रथम कड़ी पर ही खण्डित हो गई है | क्योंकि कारण के बिना कभी कार्य नहीं हो सकता , जब कारण ही जड़ है तो कार्य भी जड़ ही होगा | जब आपके पास उत्तर ही नहीं तो ऐसी महानास्तिकता पर आधारित विचारधारा आपने खड़ी क्यों की ? और लोगों को नास्तिकता की और क्यों धकेल रहे हो ?
सि - उसके बाद क्या हुआ ?
वि - उसके बाद वह कोशिका विभाजित होने लगी व बहु रूप हो गई और मछली आदि बनी |
सि - कोशिका को बहु रूप कर मछली बनने तक की प्रक्रिया के लिए कौन जिम्मेदार है ?
वि - प्राकृतिक कारक |
सि - प्रकृति जड़ है पूर्व में ही सिद्ध कर आएं है उसमे बुद्धि नहीं है | कौन जिम्मेदार है ?
वि - अमीबा |
सि - अमीबा अधिक बुद्धिमान है अथवा तुम ?
वि- हम |
सि- जब तुच्छ बुद्धिवाला अमीबा अपनी इच्छा से बहुरूप हो कर मछली जैसी रचना बुद्धिपूर्वक बना सकता है तो हमे आपसे कहतें है आप पंख की इच्छा कर के अपने शरीर में पंख बना के दिखाएँ |
सि- फिर क्या हुआ ?
वि - फिर मछली आदि जिव अपने शरीर से कुछ संतुष्ट नहीं थे तो वे प्राकृतिक परिवेश से प्रभावित होते होते करोडो वर्षों में कछुए आदि बने |
सि - वाह जी | मछली व कछुए के शरीर में जमीन आसमान का अंतर् है और फिर मछलियां आज भी है और कछुए भी | आप ये तो बताएं इन जीवो के शरीर बुद्धिपूर्वक बने है या नहीं ?
वि - जी वो तो है |
सि - कहिये ये बुद्धि किसकी है ? ईश्वर तो आप मानते नहीं | प्राकृतिक कहना मत , प्रकृति जड़ है | मछली में इतनी बुद्धि नहीं की वह अपनी बुद्धि से कछुवा बन जावे ? और फिर मछली को अपने शरीर से क्या आपत्ति थी कि वो कछुआ बनना चाहती थी ?? मछली केवल जल में साँस ले सकती है और कछुआ जल व् थल दोनों पर ? कहिये ये सामर्थ्य कहाँ से विकसित हुई ??
वि - जी पता नहीं |
सि - फिर आपको ऐसी मिथ्या कल्पना करते लाज नहीं आई ? आगे क्या हुआ ?
वि - फिर कछुए जल से जमीन पर आने लगे तो सरीसृप आदि विकसित हुए |
सि - वाह वाह | पिछले प्रश्नो के तो उत्तर है ही नहीं आपके पास और आगे से आगे गप्प मारे जा रहे हो | ये तो ऐसी बात हुई कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा |
वि - जी यही सिद्धांत न्यायोचित है क्योंकि इन सब का बनाने वाला कोई ईश्वर आदि नहीं |
सि - भला बिना किसी बुद्धिमान के बनाये कुछ बन सकता है कभी ?? आपसे कोई कहे कि ये जो आपके घर में घड़ा या कोई अन्य वस्तु पड़ी है, ये स्वमेव बन गई है तो मान लोगे ?
वि - जी नहीं मान सकते |
सि - फिर ये सृष्टि, सूर्य चन्द्रादि, बिना किसी बुद्धिमान के कैसे बनी ?? परमाणु (कारण) जड़ है उसमे अकल नहीं , हम (जीवात्मा ) सृष्टि आदि बना नहीं सकते | और ईश्वर आप मानते नहीं ? बताइये कैसे बनी है ? क्या सूर्य व् पृथ्वी , जोकि दोनों जड़ है, अकल नहीं , दोनों ने स्वयं ही निर्णय लिया की में (पृथ्वी ) आप (सूर्य ) से इतने प्रकाशवर्ष दूर चली जाती हूँ और फलानि फलानि दिशा में फलानि फलानि गति में घूम लेती हूँ ??
क्या आपको सृष्टि व् शरीरादि रचना में बुद्धि व् व्यवस्था नहीं दिखती ?
वि - जी दिखती है |
सि - फिर अपने आप बनी क्यों मानते हों ?
सृष्टि को देख के सृष्टा का , नियम को देख के नियंता का , व्यवस्था को देख के व्यवस्थापक का, बुद्धि को देख के क्या बुद्धिमान का अनुमान नहीं होता ??
सांप के पांव कैसे लुप्त हुए ?
वि - सांप ने पांवो का प्रयोग लेना बंद कर दिया था इसलिए लुप्त हो गए , जो अंग अधिक उपयोग में आतें है वे अधिक विकसित व् कम उपयोग वाले कम या लुप्त हो जातें है |
सि - पांव लुप्त होने से पूर्व सांप कैसे चलता था ?
वि - पाँव से |
सि - फिर पावों का उपयोग लेना बंद क्यों कर दिया ? अर्थात चलना बंद कर दिया ? तो क्या एक ही जगह पड़ा रहता था ? जो पड़ा रहेगा तो शिकार नहीं करेगा तो भूख से मर नहीं जावेगा ??
वि - पता नहीं |
सि- मनुष्य कैसे बना ?
वि - बन्दर से |
सि- बंदर व् मनुष्य में भी भारी अंतर् है | शारीरिक रचना के साथ साथ मन , बुद्धि, वाणी आदि का भी अभाव है | कहिये जो बंदर आज भी पेड़ो पर उछल कूद करतें है उनमे बुद्धि व् वाणी आदि कैसे विकसित हुई ? कौन जिम्मेदार है ?
वि - प्रकृति को देख देख के बुद्धि व् वाणी विकसित हुई |
सि- वाह जी | आज भी धरती पर अनेकों मनुष्य जातियां ऐसी रहती है, जोकि है तो मनुष्य किन्तु बिना पढ़े लिखे बुद्धि उनको नहीं आती | वे प्रकृति को देख के बुद्धि मान क्यों नहीं होते ? हजारों सालों से मुर्ख ही क्यों है ?? फिर बंदर से मनुष्य बन के बुद्धिमान होना मानना तो ऐसा है जैसे कोई कहे मेने मनुष्य के सींग से बने आभूषण खरीदें है |
सि- सुनो भाई | ज्ञान नैमित्तिक होता है स्वाभाविक नहीं |
वि - कैसे ?? कृपया समझाएं |
सि- इसकेलिए एक दृष्टांत समझें
मान लीजिये कोई बच्चा है जो अभी पैदा ही हुआ है | उसकी माँ उसकी सब देखभाल आदि करे, दूध पिलावे, साफ सफाई आदि भी रखें किन्तु उसके सामने कोई भी बातचीत व् ऐसा व्यवहार आदि न करे जिससे बच्चा कुछ सिख सके ना ही उसे कुछ भी शिक्षादि देवे | इसी प्रकार जब बच्चा बड़ा होने लगेगा तो ना कुछ बोल पायेगा, न सीख पायेगा आदि अर्थात मंदबुद्धि रह जावेगा ? ये कितना भी प्राकृतिक वस्तुओं को देख लेवे स्वमेव ज्ञानी नहीं हो सकता |
ऐसे अनेको उदाहरण पाए जातें है जहाँ एक बार २ बच्चीया एक भेड़िये की गार में पाई गई , वे दो हाथ व् दो पांव से चलती थी , भेड़िये के समान ही व्यवहार व् आवाजें करती थी , लोगो से डरती थी, दूर भागती थी आदि बहुत मुश्किल से उनको सामाजिक शिक्षा दी जाकर कपड़े आदि पहनने सिखाये जा सके एवं पश्चात् मर भी गई |
https://en.wikipedia.org/wiki/Feral_child
इस प्रकार ज्ञान नैमित्तिक होता है अर्थात किसी के द्वारा दिया जाना आवश्यक है , नहीं दिया जावे तो स्वमेव नहीं हो सकता ?
सि- अब बताइएं आपके पूर्वज बंदर को ज्ञान किसने दिया व् वाणी कहाँ से आई ??
और मनुष्य पर आकर आपका विकास सिद्धांत रुक क्यों गया ?
वि - जी रुका नहीं है बौद्धिक विकास आज भी चल रहा है ? लोग बुद्धिमान होते जा रहें है |
सि - अरे वाह | मनुष्य से पहले तक तो शारीरिक विकास होता रहा , और मनुष्य पर आकर शारीरिक रुक के बौद्धिक शुरू हो गया ?
आपके सिद्धांत में ये मोड़ कैसे आया? कौन जिम्मेदार है ?
प्रकृति जड़ है, अकल नहीं , वो जिम्मेदार नहीं |
ईश्वर आप मानते नहीं
और रहे आप | यदि आप जिम्मेदार है तो अपने शरीर पर विकास को पुनः लागु कर पंख ऊगा के बताएं |
आपका सिद्धांत पग पग पर मिथ्या साबित होता है, ऐसे अनेकों प्रश्न है जिसमे सिवाय निरुत्तर रहने के आप कुछ भी न बोल सकें अथवा तुकबंदी व् थोथी कल्पनाओ का सहारा लेंगे |
जो जिव जैसा आज है सृष्टि आरम्भ में भी वैसा ही था , आज कुत्ते से कुत्ते, घोड़े से घोडा, बंदर से बंदर, मनुष्य से मनुष्य , गेंहू से गेंहू की फसल, बाजरे से बाजरा आदि पैदा होतें है , सृष्टि आरम्भ से ऐसा ही चल रहा है और महाप्रलय पर्यन्त ऐसा ही चलेगा.
आज अधिकांश वैज्ञानिक डार्विन के मत को सिरे से नकार चुकें है किन्तु उनके पास अभी भी ऐसा कोई संतोषजनक सिद्धांत नहीं है जिसे डार्विन के उत्तर में पेश कर सकें अर्थात डार्विन को हटा के रिप्लेस किससे करें ? इसलिए यही चलने दो फ़िलहाल |
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