*Demonstration : of Slavery or Proud?*

*प्रदर्शन: दासता का अथवा गौरव का?*

प्यारे राष्ट्रभक्त नागरिकगण!
           अभी एक जनवरी आने वाली है। इस दिन से पूर्व मध्य रात्रि सारे देश में इस देश के अधिकांश प्रबुद्ध युवा, वृद्ध, युवती एक दूसरे को नववर्ष की बधाई देंगे। होटलों में शराब आदि अभक्ष्य एवं बुद्धिनाशक पदार्थों की पार्टियां होंगी, नृत्य-संगीत में इस देश की तरुणाई मस्त होगी। सम्पूर्ण विश्व में आतिशबाजी होगी, अरबों डॉलर जलाकर नष्ट कर दिये जाएंगे, पर्यावरण का विनाश होगा परन्तु कोई पर्यावरणवादी वा न्यायालय इस पर रोक लगाने की बात सोचेगा भी नहीं। यदि कोई विवेकी पुरुष इस अभागे भारत से पूछे कि आज किस प्रसन्नता में भावाविभोर होकर वह मदमस्त हो रहा है? तब यह आधुनिक दीन हीन व दास भारत यही कहेगा कि आज के दिन हजरत ईसा का खतना हुआ था, ऐसा सुना जाता है। जब इस प्रगतिशील (?) भारत से यह पूछा जाये कि किसी अन्य देश में जन्मे, किसी सम्प्रदाय विशेष के प्रवर्तक का खतना हुआ, इससे तुम्हें कौनसा आनन्द मिल रहा है? तब यह दीनता व दुर्दशा से ग्रस्त राष्ट्र क्या कहेगा? *वस्तुतः अंग्रेजों ने इस देश पर दो सौ वर्ष शासन करके इसे पूर्णतः दास बना लिया। हमारी शिक्षा, संस्कृति, सदाचार, खान-पान, आचार-विचार, आहार, वेशभूषा, भाषा सब कुछ उन्हीं अंग्रेजों का दास बनकर रह गये।* उन्होंने लाखों भारतीयों का खून बहाया, जेलों में सड़ा-सड़ाकर मारा, यातनाएं दीं, और स्वतंत्रता के पश्चात् यह देश ऐसे दासमनोवृत्ति के हिन्दू विरोधी लोगों के हाथ में चला गया कि अंग्रेजों से स्वतंत्र होकर भी परतन्त्रता को न केवल ढोने को विवश हुआ अपितु पराधीन भारत की अपेक्षा कई गुनी दासता के जाल में फंस गया। सचमुच इस देश की तुलना विश्व के किसी अन्य गिरे से गिरे देश से भी नहीं की जा सकती है। यह भारत उन्हीं का गुणगान गा रहा है, जिन्होंने हमें लूटा, खून बहाया, यन्त्रणाएं दीं। *अंग्रेजों की इस दासता के विरुद्ध हजारों क्रान्तिकारियों ने अपने प्राण आहुत कर दिये, माताओं ने अपनी गोद सूनी कर दीं, कितनी माताओं ने वैधव्य को गले लगाया, कितने बच्चे अनाथ हो गये, पुनरपि यह देश उन्हीं अंग्रेजों का ऐसा मानसिक, बौद्धिक दास न केवल बना रहा* अपितु वह निरन्तर अपने गौरवशाली भारत के इतिहास, संस्कृति, शिक्षा, सदाचार को भूलकर अंग्रेजियत की कीचड़ में फंसता जा रहा है। यह अभागा भारत पाश्चात्य देशों को देख-2 कर जी रहा है, उन्हीं की नकल कर रहा है, उन्हीं के संकेतों पर ऐसे नाच रहा है, जैसे कोई बन्दर मदारी के संकेतों पर नाचता है। अरे! बन्दर वा पशु में तो बुद्धि नहीं होती परन्तु आप तो स्वयं को बुद्धिमान् मानते हो।

       ओह! मेरे भारत! क्या यह भी जीवन है? अरे! यह तो पशुओं का जीवन है, जो डंडे मारने वाले अपने मालिक के संकेतों पर नाचता है। वह मालिक तो डंडे के साथ उस पशु को चारा भी देता है परन्तु कोई देश इस भारत को कुछ दे भी नहीं रहा है, तब भी यह उनके संकेतों, परम्पराओं पर व्यर्थ नाच-2 कर किसे व क्यों प्रसन्न करना चाह रहा है? *स्मरण रहे कि किसी की नकल वही करता व संकेतों पर वही नाचता है, जो या तो कायर-दुर्बल होता है अथवा मूर्ख।* क्या अपने भारत को ऐसा समझा जा रहा है?

       मेरे देशवासियो! क्या एक जनवरी का भारत से कोई सम्बन्ध है? क्या किसी प्राकृतिक घटना से कोई सम्बन्ध है? यदि नहीं, तो नया वर्ष कैसे हो गया? आप कहेंगे कि वर्तमान संसार में यही चल रहा है, तब हम भी विवश हैं, तो कोई बात नहीं, व्यवहार में प्रयोग करते रहो परन्तु *बेगानों की शादी में अब्दुल्ला बनकर दीवाने क्यों हो रहे हो?*

       क्यों अपने मान, स्वाभिमान, अस्मिता की चिता जला रहे हो? क्या आपको अपने रक्त, जीन्स अथवा इस जन्मदात्री भारत-भूमि पर कुछ भी अभिमान नहीं है? क्या आपमें स्वतंत्र सोचने की जरा भी बुद्धि नहीं रही है? क्या आपने अपने पूर्वजों को नितान्त मूर्ख व दास ही मान लिया है?

       क्या आप कभी विचारेंगे की आधी रात में उल्लास मनाने की निशाचरी परम्परा आपको कैसे बुद्धिमत्तापूर्ण प्रतीत हो रही है? जब सभी दिवाचर प्राणी सोते हैं और स्वास्थ्य की दृष्टि से सोना ही उत्तम है, तब ये महानुभाव नाचगान, मदिरा में व्यस्त होते हैं।

       इधर भारतीय परम्परा में शुभ कार्य प्रभात वेला में उचित माने जाते हैं, जो स्वास्थ्य विज्ञान की दृष्टि से सर्वथा अनुकूल है। हमारे नववर्ष पर ऋतु परिवर्तन का वातावरण होता है, नई फसल का आगमन होता है, प्रकृति में नये परिवर्तन होते हैं परन्तु एक जनवरी को क्या ऐसा कुछ परिवर्तन होता है? हमारा तो यह भी दावा है कि भारतीय संवत् के प्रथम दिन ही मनुष्य व वेद की उत्पत्ति हुई थी, क्या कोई एक जनवरी को ऐसा कुछ होने का दावा कर सकता है?

       यदि ऐसा नहीं, तो जागो! देखो, सुनो! *आपके महान् पूर्वजों का आत्मा आपको धिक्कार रहा है।* उठो, दासता की रस्सी से मुक्त होने के लिये मैं आपका आह्वान करता हूँ। *आइये! मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि हमारा प्राचीन भारतीय वैदिक ज्ञान-विज्ञान ब्रह्माण्डीय ज्ञान है, ईश्वरीय ज्ञान है।* आइये, इसकी ओर चलने का प्रयास करें, तब आपको किसी के संकेत पर नाचने की आवश्यकता नहीं रहेगी। *उठ! मेरे भारत उठ, अतीत की स्मृतियों से कुछ सीख, अतीत की भूलों से भी कुछ शिक्षा ले एवं उज्ज्वल भविष्य के निर्माण हेतु कटिबद्ध हो जा।*

       मेरे भारत के प्रबुद्ध नागरिको! यदि आप में से कोई अपने दासत्व को ही बुद्धिमत्तापूर्ण व गौरवमय मानते हैं और भारतीय वैदिक ज्ञान-विज्ञान की निन्दा में ही अपनी प्रगतिशीलता मानते हैं, अथवा आप अपने को बहुत शिक्षित व वैज्ञानिक मेधासम्पन्न मानते हैं, तो मैं आपका स्वागत करता हूँ। आइये, यहाँ पधारें, हम मिलकर सत्य व स्वाभिमान का निर्णय करें।

*कृपया इस सन्देश को अधिकाधिक प्रसारित करने का कष्ट करें।*

Post a Comment

0 Comments