1. अगर गाने की शुरुआत मे दिखने वाला किरदार रतनसिंह का है तो उनकी वेशभूषा को लेकर ही सबसे बड़ा प्रश्न खड़ा होता है ! यह वेशभूषा राजपूत राजा की कम मुग़ल बादशाह की अधिक प्रतीत होती है....
2. नृत्य करते हुए पद्मावती को दिखाया गया है...ऐसा रिवाज़ था भी तो बार बार घूंघट ऊपर नीचे करना, यह भी रिवाज़ था क्या ?? अरे साहब ! ऐसा नृत्य कुलवधू नहीं करती थीं...यह नृत्य राज दरबार की पेशेवर नृत्यांगनाएं करती थीं !
एक वामपंथी मित्र ने मुझे बताया कि पद्मावती का जौहर स्त्री दासता का ही अध्याय है.....मेरा जवाब यह है--
क्या आज कोई व्यक्ति पिता के वचन का पालन करते हुए 14 साल वनवास में काट सकता है ? क्या धोबी के कहने पर कोई राजा अपनी पत्नी को जंगल भेजेगा ? यह सब इक्ष्वांकु वंश में हुआ...पता है यह कोई कार्ल मार्क्स या लेनिन का खानदान नहीं था...यह भरत, पुरुरवा और अज का खानदान था...फिर क्या आवश्यकता पड़ी इन सबकी ??
क्योंकि उस समय देशभक्ति की कसौटी यही थी !
सतयुग, त्रेता और द्वापर से होकर कलियुग तक हर मान्यता और विचार समय के परिप्रेक्ष्य में बदलता रहा है....प्रवृतियां तत्कालीन युगीन मान्यताओं और समष्टि चेतना पर निर्भर करती हैं ! अब की स्थिति को तत्कालीन स्थिति के साथ जोड़कर देखना गलत होने के साथ मूर्खता का परिचायक भी है !
क्या लगता है पद्मावती सामान्य महिला थी ? वो क्षत्रिय समाज का नक्षत्र थीं, आभा थीं, ज्योति थीं ! उनकी इच्छा अनिच्छा से युगांतकारी परिवर्तन सम्भव था....उनकी एक दृष्टि तख़्त पटलने के लिए पर्याप्त थी ! फिर क्या हुआ कि वो सोलह हजार रानियों के साथ अग्नि की आहुति बन गयीं ??
यह उस समय देशभक्ति की सर्वोच्च कसौटी थी, सर्वप्रमुख मानक ! आसान नहीं होता आग में ज़िंदा जल जाना....वो चाहती तो ख़िलजी की बेगम बनकर आलिशान ज़िन्दगी जी सकती थीं...किन्तु उसने यह मार्ग चुना, जो आगामी पीढ़ियों को समष्टि की खातिर व्यष्टि को बलिवेदी पर हवन कर देने के लिए प्रेरित करेगा !
वामपंथियों ! वो अकेली अपने आप में सरकार थीं... जब राणा कैद थे और सेनापति गौरा रुष्ट हुए वन वन भटक रहे थे तब राज्य का सञ्चालन इनकी ही निगेहबानी में हो रहा था....गौरा को मनाकर लाना और राणा के बंधन काटने तक की समस्त व्यूह रचना उनके ही मार्गदर्शन में सम्पन्न हुई थीं !
अब यह बताइये कि पद्मिनी को सती हो जाने के लिए किसने कहा ?? किसी ने नहीं ! यह उनका स्वयं का निर्णय था ! और कितना साहसपूर्ण ! कितनी चौड़ी छाती रही होगी...क्या जिगर रहा होगा और साहस का अपरिमित पारावार........
व्यक्ति अस्तित्व आवश्यक ही नहीं अपितु अपरिहार्य है...किन्तु आप उनका क्या करेंगे जिनके सामने राष्ट्र से बड़ा कुछ भी नहीं...क्योंकि उनका भी यह सिद्धान्त जो बलिदान की बात करता है, आनेवाली पीढ़ियों को बचाने का ही संकल्प है यानी मानव के अस्तित्व के लिए......
आग की लपटों में सिमट कर रह गयीं पद्मिनी किन्तु उसकी यशोगाथा-शौर्यगाथा रजवट के खून के हर कतरे में और राजस्थान के कण कण में है!!
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