🌷मत चूके चौहान🌷

*ओ३म्*

देश एवं जाति द्रोही नीच जयचन्द की मनोकामना पूर्ण हुई।भारत के अन्तिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान तरावडी के मैदान में हार गये और शहाबुद्दीन गौरी उन्हें बन्दी बनाकर ले गया।किसी प्रकार स्वामी भक्त और कुल श्रेष्ठ वीर और कवि भट्ट चन्द्रवरदाई भी वहां जा पहुंचा।

गौरी ने पृथ्वीराज की आंखें फुडवा दी।फिर उसके वध का निश्चय भी घोषित कर दिया।इसी बीच में वीर चन्द्र ने यवन सम्राट से निवेदन किया-'महाराज पृथ्वीराज अब कुछ ही दिन का मेहमान है।उसके बाद एक अद्भुत तीर-अंदाज का सदा के लिए अन्त हो जायेगा।

कोई समय था,जबकि आंखों पर पट्टी बांध कर पृथ्वीराज लक्ष्य बेध किया करता था और जनता आश्चर्यमुग्ध होकर उसकी निपुणता की सराहना किया करती थी।'

बादशाह ने पूछा-'क्या अब भी यह संभव है कि पृथ्वीराज अपनी उस कला का प्रदर्शन कर सके ?'

चन्द्र ने कहा-'ठीक उत्तर तो पृथ्वीराज ही दे सकता है,यद्यपि अब वह आंखों से विहीन है,फिर भी मैं समझता ह़ू कि हजूर का मनोरजंन करने से वह इन्कार न करेगा और इस अवस्था में भी अद्भत खेल दिखा सकेगा।'
चन्द्र को पृथ्वीराज से पूछने के लिए भेजा गया।लौट कर उसने पृथ्वीराज की स्वीकृति सूचित कर दी।

प्रदर्शन का नियत समय आ पहुंचा ।दर्शकों की अपार भीड है। 'शब्द-वेधी' बाण विद्या का प्रदर्शन होने वाला है।नेत्रों की ज्योति से हीन बन्दी भारत सम्राट् कमान में तीर चढ़ाये सावधान खड़ा है।

बादशाह शहाबुद्दीन गौरी ने कार्यक्रम के अनुसार,महल की ऊपर ऊंची अटारी में खड़े होकर एक स्थान पर विधिपूर्वक टंकार का शब्द उत्पन्न किया।उसी समय चन्द्र कवि ने आवेश में आकर यह दोहा पढ़ा-

*"चार बांस चौबीस गज,अंगुल अष्ट प्रमाण ।*
*ता ऊपर सुल्तान है,मत चूके चौहान ।।"*

तुरन्त ही पृथ्वीराज की चुटकी से निकला हुआ तीर सरसराता हुआ चला।शहाबुद्दीन कटे हुए वृक्ष के समान धड़ाम से भूमि पर गिर कर छटपटाने लगा।तीर उसकी छाती में लगा था।जनता में भगदड़ मच गयी।राज्य कर्मचारी किंकर्त्तव्यविमूढ़ से खड़े रह गये।थोड़ी देर के पश्चात् उनको चन्द्र और पृथ्वीराज का ध्यान आया।परन्तु वे तो इससे पहले ही संसार को छोड़ चले थे।

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