पर्सियन एम्पायर

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*पर्सियन एम्पायर दुनिया के सबसे जाने माने प्रतिष्ठित और शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक!! .. रोम साम्राज्य के तो पसीने छूटते थे इसके नाम से। .. कला,संस्कृति, भोग-विलास सभी प्रकार से अव्वल।*
लेकिन दूर रेगिस्तान में जब इस्लाम नाम के बवंडर का उदय होता है तो उस बवंडर की ताकत को झेलने में सभी कथित विकसित और सभ्य समाज और साम्राज्य अपने आप को अक्षम पाते हैं। .. उस बवंडर के सामने सभी ने घुटने टेक दिए। तो बहुत कोई जड़ से ही उखड़ के फेंका गए। .. पर्सिया जैसा साम्राज्य इस बवंडर को सौ साल भी झेल नहीं पाया और घुटने टेक दिया।.. कुछ स्वाभिमानी और अपनी पहचान के प्रति समर्पित लोग अपना बोरिया बिस्तर बाँध के पूर्व (भारत) की ओर पलायन कर गए।.. और आज इनकी सबसे ज्यादा आबादी अपने मूल देश से ज्यादा यहीं पे है।

इस्लाम के 1400 के बवंडर के मध्य आज भी पाकिस्तान के जंगलों में ‘कलश’ जनजाति अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है लेकिन अपने धर्म और रीति रिवाज से समझौता उन्हें बिल्कुल भी मंजूर नहीं है।.. वहीं इराक सीरिया में यजीदी लोगों के साथ हो रहा है। .. इनको अल्टीमेटम दिया जाता कि इस्लाम की शरण में आ जाओ नहीं तो सर कलम को तैयार रहो।… इनके इलाके काफिरिस्तान के नाम से चिन्हित होते हैं और इस्लाम के शरण में आने के बाद नुरिस्तान हो जाता है।
वर्तमान में इन जीवित और संघर्ष करती जनजातियों की तरह ही कितनी ही जनजातियां अरब से लेकर भारत तक में वास करती थी, जिनकी अपनी अलग-अलग पहचान और संस्कृति थी।.. आज वे कहाँ गायब हो गए ??.. अगर जेनेटिकली जिंदा भी हैं तो क्या वे जिंदा हैं ?? उनको जिंदा रहना बोल सकते हैं??
ये लोग अपने अतीत की किन बातों पे गर्व करते होंगे ??? इनका अतीत उस बवंडर के बाद से ही पूर्णतः मिट गया !! अब इनके पास गर्व करने लाइक केवल थोथी अतीत हैं जो कि थोप दिया गया है। इनका गर्वमय अतीत ये है कि इन्होंने तलवार लेकर अपने ही सहोदरों का कितना खून बहाया और कितनों को अपने कुनबे में शामिल कराया।

भारत में विश्व की सबसे ज्यादा इंडिजिनस पीपल वास करते हैं।.. टोटल आबादी के 8% हिस्सा कवर करती है।.. 85 मिलियन आबादी हैं। .. जो कि अब तक अपने मूल में बने हुए हैं। हलेलुइया प्रभाव का इतिहास केवल सौ डेढ़ सौ साल का है।
तो अरब से लेकर पाकिस्तान तक के सारे जनजाति किधर को चले गए?? और यहाँ ऐसी कौन सी ताकतें रही जिन्होंने उस बवंडर को रोके रहा ??
वो बवंडर जिसके सामने एक तरफ भारत के सीमावर्ती राज्य सिंध और दूसरी तरफ स्पेन तक में सब झुलस गए मात्र सौ साल में ही वो बवंडर सिंध में बैठ के तीन सौ साल तक बैठ के हिम्मत जुटाता रहा आगे बढ़ने की!!

और जब अंदर आये भी तो कौन सा विजय पाये?? .. प्रशासनिक या कुछ और ??
हम यहाँ बैठ के 1400 साल बाद भी इनकी टांग खींच रहे हैं, जवाब तलब कर पा रहे हैं, ..  क्यों खींच पा रहे हैं, क्यों सवाल उठा पा रहे हैं ?? कौन सी शक्ति इसके पीछे कार्य कर रही है?? ..
क्या यही अनुमान हम पाकिस्तान से पश्चिम मुल्कों और कथित इस्लामिक मुल्कों में लगा सकते हैं?? .. कोई है जो इनके खिलाफ बोल सके ?? .. क्यों नहीं बोल सकते ?? .. कोई डर है ?? बिल्कुल है! .. और वो डर भरा गया है। और उस डर को दबा कर उसपे गर्व करने को मजबूर होना पड़ता है।

हम इनका विरोध करते हैं और पुरजोर करते हैं, अपने अतीत पे सीना फुलाकर गर्व करते हैं!!.. क्यों ???
क्योंकि इस लाइक हमें हमारे पूर्वजों ने छोड़ा है।.. कि बेटा तुम अपने अतीत पे गर्व करो, अपने पूर्वजों पे गर्व करो, अपने वर्तमान पे गर्व करो और सामने बवंडर की पैदाइश का खुल कर विरोध भी।

तमाम इस्लामिक मुल्कों के वैसे लोग जो अपनी पहचान के साथ सर्वाइवल दौर से गुजर रहे हैं वो भारत के बारे में क्या सोचते होंगे ??
धन्य है बोर-ओत (भारत) भूमि आदिभूमि और उनके वीर सुपुत्र जिन्होंने अपनी जीवटता से इस बवंडर से 1400 साल बाद भी अपने को विचलित नहीं होने दिया है वहीं हम अपना गौरवशाली इतिहास केवल किताबों के पन्नों में पढ़ते हैं और वर्तमान में गर्व करने लायक कुछ भी शेष नहीं बचा है, 100-200 साल में ही हमने घुटने टेक दिए।

भारत में अपनी विशिष्ट अतीत और पहचान को समेटे हुए और बिना किसी डर भाव के विचरण और जी रहे पारसी क्या ये सोचते नहीं होंगे कि ‘हम पलायन करके भारत आने को क्यों मजबूर हुए ?? हमारे जैसे कितने हिंदुओं ने दूसरे देश में पनाह ली ? .. हमारे यहाँ ऐसे वीर क्यों नहीं हुए जो हमारी पहचान को अक्षुण्ण बनाये रखते ?? आज जो हमारी ओरिजिनलिटी है, जिसे हम बरकरार रखे हुए हैं, इसमें किनका योगदान है? कौन हमें इसके लिए सेफगार्ड दिया?.. आज पारसी होने पे हम गर्व करते हैं तो इसके जिम्मेवार कौन हैं?? वहीं हमारे सहोदर अब ईरानी होने पे गर्व करते हैं!!”
पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के घाटियों में अपने अस्तित्व के साथ जूझ रही ‘कलश’ जनजाति क्या ये नहीं सोचती होगी कि हमारे जैसे ही लोग भारत में किस तरह से रह रहे हैं?? हमारे यहाँ ऐसे शासनकर्ता रहते जो उस बवंडर को हमारे जंगलों के अंदर घुसने नहीं देते तो आज हम भी इस स्तिथि में नहीं रहते।
क्या सोच के यजीदी लोग भारत में शरण मांग रहे थे???
दुनिया भर में बसे यहूदी जब इजरायल में जुटते हैं तो भारत को विशेष तौर पे क्यों शुक्रिया अदा करते हैं??

हे हिन्दू नामधारी हिंदुओं! क्या तुमने कभी चिंतन मनन किया है कि आज ये जो तुम हिन्दू नाम ढोये जा रहे हो किसी अरबी-उर्दू के स्थान पे उसको जीवित रखने वाले लोग कौन हैं ?? ऐसी कौन सी शक्तियां थी जिसने तुम्हारे हिन्दू नाम को बरकरार रखा ?? जो लोग मर मिटे, जिनका  ढंग से अंतिम संस्कार तक नहीं हो पाया वो किसके लिए लड़े और मरे?? ..  ऑफकोर्स अपनी पहचान और अपनी आने वाली संततियों की सुरक्षा के लिए।.. चिंतन करना कभी कि ये जो तुम हिंदू नाम ढोये जा रहे हो उसको संरक्षित रखने के लिए तुम्हारे बाप दादाओं ने कितनी कुर्बानियां दी है??.. किन-किन यातनाओं से गुजरे हैं??
अगर गर्व नहीं कर सकते तो उपहास भी मत उड़ाओ।    

स्वार्थी और भीरू लोग कभी भी हमारे गौरवमयी इतिहास का भाग नहीं हो सकते और उन स्वार्थियों और भीरुओं का उदाहरण दे कर आप उनका उपहास उड़ा रहे हो जिनकी वजह से आज तुम अपनी एक अलग पहचान के साथ जी रहे हो।.. और स्तिथि यही रही तो तुम बेशक भविष्य के स्वार्थी और भीरू होगे।

*जिन्होंने भी हमें उस बवंडर से बचाया हम उसके सदा ही ऋणी रहेंगे और गर्व करते रहेंगे।*

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