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*भृगु नाम के एक बड़े ही महान ऋषि थे।
उनकी ख्याति आज भी अमर है।
उन्होंने भगवान विष्णु की क्षमाशीलता की बड़ी बड़ाई सुनी थी।
उन्होंने एकदिन सोचा, क्यों ना चल कर उनकी क्षमा शीलता की जांच कर ली जाए ?
ऐसा सोच कर वे भगवान विष्णु की क्षमा की जांच के लिए उनके पास पहुंचे।
जिस समय वे पहुंचे, भगवान विष्णु मां लक्ष्मी की गोद में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम कर रहे थे।
सारे लोकाचारों को छोड़कर वे वहां पहुंचे, ना आव देखा न ताव और बिना कुछ कहे सुने ही, विष्णु के सीने में जाकर जोर से लात मार दी।
मां लक्ष्मी इस घटना को देखकर आश्चर्यचकित रह गई।
सीने पर चोट पड़ते ही भगवान विष्णु उठ खड़े हुए, अकचका कर और भृगु मुनि को अपने पास पाकर उनके पांव छू कर सीने से लगालिया।
भृगु मुनि तो क्रोध से भरे थे, चाहे बनाबटी रूप से ही क्यों ना हो, कारण वे तो जानबूझकर जांच करने आए थे विष्णु की क्षमाशीलता की।
विष्णु भगवान उनके इस व्यवहार को देखकर चकित रह गए।
विष्णु भगवान ने आगे पांव सहलाते हुए कहा – "मुनिवर, आपके पांव तो बड़े ही कोमल हैऔर मेरा सीना तो वज्र कठोर है।
मुनिश्रेष्ठ ! आपके पांव को चोट तो नहीं आई ?
"भगवान विष्णु की इस वाणी ने भृगु मुनि को बहुत ही चकित किया।
उनका क्रोध विष्णु भगवान की कोमल वाणी से पानी पानी हो गया।
वे तो सोच रहे थे कि विष्णु भगवान उनके इस दुर्व्यवहार के लिए, सीने पर लात मारने के लिए, बेहद नाराज होंगे और प्रतिकार रूप में जाने क्या रुख अख्तियार करें ?
संभव है, बहुत ही क्रुद्ध हों
और प्रतिकार रूप में अपने ढंग से दंडित करें पर यहां तो पासा ही पलट गया।
क्रुद्ध होने की अपेक्षा कोमल बने रहे।
भृगु अपने इस व्यवहार से बड़े लज्जित हुए।
विष्णु भगवान ने इतना ही नहीं किया, वरन् उन्होंने सीने से लगाकर आदर भाव दिया और आतिथ्य कराकर सादर विदा किया।
भृगु ने स्वीकार किया कि भगवान विष्णु जैसी क्षमाशीलता अन्यत्र दुर्लभ है –
न भूतो न भविष्यति।
ऐसा ना अतीत में हुआ और नाम भविष्य में होने की संभावना है, जब जब धरती रहेंगी।
विष्णु भगवान की क्षमाशीलता की यह कहानी अमर रहेगी –
जब तक सूरज चांद रहेगा। जितना महान अपराध, उतनी ही महान क्षमा !
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