काजी कौन?

मैं लोकल समाचार पत्र में अक्सर पढ़ता था कि आज फलाने मियां जी को शहर काजी चुना गया , ढिमकाने मियां जी को शहर काजी नियुक्त किया गया ।
शहर काजी ? कौन होता है शहर काजी ?
मैं सोचता था कि ये शहर काजी कौन बला है ? शायद भारतीय संविधान में वर्णित कोई संवैधानिक पद होगा ? जैसे राज्यपाल होता है , मुख्य न्यायाधीश होता है या अटॉर्नी जनरल होता है , वैसा ही कुछ ।
बाद में पता चला कि शहर काजी संविधान प्रदत्त कोई भी पद नहीं है । दरअसल शहर काजी भारत में इस्लामिक शासन के दौरान एक ऐसा पद था जो शहर का मुख्य न्यायाधीश होता था और जो यह देखता था कि शहर में शरिया कानून ठीक से लागू हो रहा है नहीं । शरीयत की रोशनी में वह विवादों को सुलझाया करता था , फैसले किया करता था , लोगों को दंड दिया करता था ।
अगर कहीं शरीयत के खिलाफ कोई काम हो रहा होता था तो वह कड़ाई से शरिया लागू करवाता था ।
शहर काजी की यह व्यवस्था मुग़लों के समय पूरे भारत में लागू थी ।
फिर अरबों-मुग़लों का जमाना जाता रहा । देश आजाद हुआ लेकिन शहर काजी की व्यवस्था फिर भी अनवरत चली आ रही है ।
आज भी भारत में शहर काजी नियुक्त किये जाते हैं । आपके अपने-अपने शहरों में भी ऐसा होता होगा ।
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एक दिन मैंने फुर्सत में विचार किया कि आज भारत में कहीं भी अरबों-फारसियों-मुग़लों का राज नहीं है । देश स्वतंत्र हो चुका है । देश में लोकतंत्र लागू है और यह देश किसी शरिया से नहीं बल्कि बाबा साहेब डॉक्टर BR आंबेडकर द्वारा लिखित भारतीय संविधान से चल रहा है , फिर आज भी शहर काजी की नियुक्ति क्यों होती है ? यह व्यवस्था आज भी क्यों लागू है ? आखिर कौन चला रहा है यह व्यवस्था ? क्यों चला रहा है ? आज न्याय के लिए देश में IPC है , न्यायिक अदालतें है , हाई कोर्ट है , सुप्रीम कोर्ट है तो शहर काजी की क्या आवश्यकता ?
देश आजाद हुए 70 सालों से ज्यादा हुए लेकिन देश का मुस्लिम तबका यह मानने को तैयार ही नहीं कि देश आजाद हो चुका है और देश में शरिया नहीं लोकतंत्र लागू हो चुका है ।
आज भी भारतीय मुसलमान यह मानता है कि यह देश सिर्फ मुसलमानों का है और यहां इस्लामिक कानून (शरिया) लागू हो । यही लोग सब्र के साथ उस दिन का इंतजार करते हुए ख्वाब सजाए बैठे हैं जब देश में मुस्लिम वर्ग बहुसंख्यक हो जायेगा , फिर से शरिया लागू किया जायेगा और भारत फिर से एक इस्लामिक मुल्क बनेगा ।
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अगर ऐसा नहीं है तो फिर आज भी भारतीय मुसलमानों की तरफ से शहर काजी की व्यवस्था क्यों लागू है ?
भारतीय न्याय व्यवस्था के समानांतर एक अन्य न्याय व्यवस्था लागू करना क्या देशद्रोह की श्रेणी में नहीं आता ?
क्या आपने कभी हिंदुओं को देश की न्याय व्यवस्था के समानांतर कोई न्यायिक व्यवस्था चलाते हुए देखा है ?
महामात्र , रज्जुक , धर्माधिकारी , दण्डाधिकारी आदि प्राचीन भारतीय न्यायिक पदों को भारत में आप कहीं भी नहीं देखते लेकिन शहर काजी जैसे अमान्य , गैर-कानूनी और असंवैधानिक पदों को आज भी भारत ढो रहा है ।
इस्लामिक शासन की  व्यवस्था आज भी भारत के प्रत्येक शहर में आसानी से देखी जा सकती है जहां शहर काजी चुना/नियुक्त किया जाता है ।
आखिर क्यों ?
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खबर आयी है कि आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड भारत के हर जिले में शरीयत अदालतों का गठन करेगा ।
मेरे मन में हमेशा एक सवाल गूंजता था कि आखिर वे कौन लोग हैं जो शहर काजी के पास न्याय के लिए पहुंचते थे ?
जबाब था ... मुस्लिम ।
अब एक सवाल फिर से उठ रहा है कि आखिर इन शरिया अदालतों में न्याय के लिए कौन जायेगा ?
जवाब वही है ....मुस्लिम ।
पर सवाल यह भी है IPC कोर्ट्स में न जाकर भारतीय मुस्लिम शहर काजी के पास या शरिया अदालतों में क्यों जाना चाहता है ।
क्या भारतीय मुसलमान को भारतीय न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं है ?
इसका सीधा सा जवाब कुरान में साफ-साफ मिलता है । कुरान में लिखा है कि अल्लाह ने मुसलमानों से कहा है कि तुममें से जो अपने मामलों को अल्लाह के बताये कानून के मुताबिक नहीं निपटाते हैं वे नाफ़रमान और फ़ासिक़* हैं ।
(फ़ासिक़ काफिर का ही पर्यायवाची है)
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अब एक मुसलमान के लिए देश के संविधान से ज्यादा कुरान और भारतीय होने से पहले खुद का मुसलमान होना मायने रखता है ।
इसी कारण देश से पहले मजहब को प्राथमिकता देने वाले भारतीय मुसलमानों के लिए भारतीय न्यायिक व्यवस्था महत्वपूर्ण न होकर मजहबी शरिया अदालतें महत्वपूर्ण हैं । बहु विवाह , तीन तलाक , हलाला आदि को प्रभावी ढंग से लागू कराने का भी एक महत्वपूर्ण जरिया हैं जिनकी पाबंदी को लेकर केंद्र सरकार अधिक गंभीर है ।
शहर काजी का चुनाव या शरिया अदालतों का गठन भारतीय संविधान व भारतीय न्यायिक व्यवस्था के समांतर सत्ता स्थापित करने का कुत्सित प्रयास है , जो सीधे-सीधे भारत की संप्रभुता को चुनौती है । यह राष्ट्रद्रोह का मामला है , जिसे हल्के में लेने का परिणाम है .... देश की एकता , अखंडता और संप्रभुता के लिए घातक खतरा ।
एक लोकतांत्रिक देश में दो सत्ताएं समांतर नहीं चल सकतीं । यह देश और उसकी व्यवस्थाएं किसी मजहबी शरिया से नहीं चलेंगी क्योंकि यह देश संविधान द्वारा प्रदत्त व्यवस्थाओं और कानून से चलने वाला देश है ।
याद रखिये , शरिया कोई कानूनी व्यवस्था नहीं है । इसका उद्देश्य न्याय करना भी नहीं है , यह तो एक इस्लामिक राज्य बनाने का पहला आधार है ।
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इस्लामिक बैंक , शहर काजी का चुनाव , शरिया अदालतें एक इस्लामिक राज्य बनने के क्रमिक चरण हैं ।
Ashish Pradhan जी

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